भीषण गरमी है आग के गोले बरस रहे हैं पत्ता तक नहीं हिल रहा पाताल भी सूख गया होगा
पिछले पच्चीस सालों का रिकार्ड भंग हो रहा है...
बड़े-बूढ़ों की गरमी ऐसे ही निकल रही थी और दूधमुँहे बच्चों की गरमी घमोरियों में निकल रही थी!
हिंदी समय में पंकज चौधरी की रचनाएँ